Saturday, July 24, 2010

क्‍या है एंजेलिना के जीवन का काला सच

‘एंजेलिना एन अनऑथोराइज्‍ड बॉयोग्राफी’ के मार्केट में आने से एंजेलिना बहुत आहत है। उन्‍होंने कहा है कि हर व्‍यक्ति के जीवन में बुरा वक्‍त आता है। मेरे जीवन में बुरा वक्‍त आया। लेकिन मैं अपने आप से सीखी।


ब्रैड पिट का मेरे जीवन में बहुत ज्‍यादा महत्‍व है क्‍योंकि उसने मेरे व्‍यक्तित्‍व को सबसे ज्‍यादा निखारा है। जब दो लोग साथ रहते हैं तो दोनों एक दूसरे से बहुत कुछ सीखते हैं। हमदोनों बहुत अच्‍छे पार्टनर है। मुझे यहां तक पहुंचाने में ब्रैड का बहुत बड़ा योगदाना है। मैं उसके साथ सुरक्षित महसूस करती हूं।


गौरतलब है कि एंजेलिना जोली की दाई ने एंजेलिना पर किताब लिखकर उन्‍हें चर्चा का विषय बना दी है। किताब में लिखा गया है कि एंजेलिना की मां ने बचपन में उसे छोड़ दिया था। और इसलिए एंजेलिना को टीन एज से ही ड्रग्‍स की लत लग गई थी। वह गुस्‍से में हिंसक हो जाती थी तथा कभी कभी तो वह खुद को भी घायल कर लेती थी।


एंजेलिना की मां मार्चलाइन अपने पति जॉन वोइट से अलग होने के बाद एंजेलिना को अपने जीवन से अलग कर दी थी। यह घटना 1976 की है। इसके बाद एंजेलिना की मां ने प्रोड्यूसर बिल डे के साथ रहने लगी थी। एंजेलिना की मां मार्चलाइन ने एंजेलिना को दो वर्षों तक अलग अपार्टमेंट में रखा था। अपार्टमेंट के स्‍टाफ उसकी देखभाल करते थे।

कोई भी बन सकेगा मिस्टर इंडिया

सुनने में यह सब फिल्म मिस्टर इंडिया की कहानी सा लग सकता है लेकिन सौ फीसदी सच है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने कांच के अत्यंत सूक्ष्म टुकड़ों की मदद से ऐसा कपड़ा तैयार किया है जिसे किसी वस्तुओं को ढंकने के बाद वे अदृश्य हो जाती हैं।

सामान्य रूप से जब प्रकाश किसी वस्तु पर पड़ता है तो वह परावर्तित होकर व्यक्ति की आंखों पर पड़ता है जिससे हमें चीजें दिखाई देती हैं। लेकिन मिशिगन टेक यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी तरकीब खोज निकाली है जिससे किसी वस्तु पर पड़ने वाला प्रकाश परावर्तित नहीं होता है बल्कि उस वस्तु के आकार के अनुसार मुड़कर अपने रास्ते पर आगे चला जाता है। हालांकि यह खोज अभी इंफ्रारेड लाइट (अवरक्त प्रकाश) तक ही सीमित है। अभी यह तकनीक प्रयोगशाला में ही सफल हो पाई है लेकिन यदि इंफ्रारेड किरणों पर मिले परिणाम दृश्य प्रकाश पर भी मिल सके तो अदृश्य होने की कल्पना साकार हो सकेगी।

कपड़ा कर देगा अदृश्य

ऐसा धातुरहित सूक्ष्म कपड़ा जो कांच के रेजोनेटर्स से बना है। रेजोनेटर वह डिवाइस या तंत्र होता है जिसके अंतर्गत पदार्थ में कंपन होता रहता है। इसे उस पदार्थ की अनुनाद प्रवृत्ति भी कहते हैं। कंप्यूटर सिमुलेशंस (कंप्यूटर द्वारा किए गए प्रयोग) में यह इंफ्रारेड प्रकाश को मोड़ कर वस्तु को गायब कर देता है। गौरतलब है कि इस प्रायोगिक कपड़े का आकार बहुत ही छोटा है। इसका आकार एक मीटर के दस लाखवें भाग के बराबर है।

इलीना द्वारा बनाया गया विशेष पदार्थ प्रकृति में मिलने वाले पदार्थो की तरह नहीं है। इसमें वे गुण हैं जो सामान्य रूप से प्रकृति में नहीं मिलते। इस कपड़े को बनाने के लिए संकेंद्रित कांच के रेजोनेटर्स को बेलन के आकार में व्यवस्थित किया गया है। न्यू साइंटिस्ट मैगजीन ने पिछले साल अनुमान लगाया था कि अगले 30 सालों में अदृश्य करने वाला कपड़ा रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाएगा।


कैसे अदृश्य होंगी चीजें

वृत्त की आराएं (स्पोक्स) एक चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करेंगी जो वस्तु पर पड़ने वाले प्रकाश की किरण को मोड़ देगा। इस धातुरहित कपड़े को बनाने के लिए सामान्य गुणधर्म के पदार्थ के अणु-परमाणु नहीं बल्कि अत्यंत महीन रेजोनेटर्स का प्रयोग किया गया है। रेजोनेटर्स को पदार्थ विज्ञान और विद्युत इंजीनियरिंग के बीच की कड़ी कहा जा सकता है।

'यहां दी जाती थी इंसानों की बलि'

पेरू के पुरातत्वविदों ने एक ऐसी जगह की खोज की है जहां छठवीं शताब्दी में इंसानों की बलि दी जाती थी। इस जगह का नाम लैम्बेक है जो पेरू के उत्तरी इलाक़े में स्थित है। प्राप्त जानकारी के अनुसार पुरातत्वविदों ने यहां एक 60 मीटर लंबा हॉल खोजा है जिसकी दीवारें कई रंगों में रंगी गई थीं।

पुरातत्वविदों के अनुसार बीते समय में इस हॉल को काफ़ी ख़ूबसूरती से सजाया जाता रहा होगा। पुरातत्वविदों की टीम का नेतृत्व करने वाले कार्लोस वेस्टर ला टोरे का कहना है कि इस हाल का निर्माण मोचे लोगों ने किया था। गौरतलब है कि मोचे लोगों की सभ्यता एक कृषि आधारित विकसित सभ्यता थी जो 100 वर्ष ईसा पूर्व से लेकर 800 ईस्वी के बीच पनपी थी इसका अस्तित्व पेरू के 'इंका' साम्राज्य के पहले था।


पुरात्वविदों का मानना है यहां युद्ध बंदियों की बलि चढ़ाई जाती थी। इस जगह की ली गई तस्वीर में फर्श पर कम से कम छह मानव कंकाल दिखाई पड़ते हैं।वेस्टर ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "समारोह के लिए उपयोग में लाए जाने वाले इस हॉल में मौजूद चीजों से मोचे समुदाय के अभिजात्य लोगों की उपस्थिति और मानव बलि के प्रमाण मिलते हैं"


गौरतलब है कि पिछले 25 सालों में पुरातत्वविदों को पेरू में मोचे समुदाय के समृद्ध लोगों और शासकों की ढेरों क़ब्र और कलाकृतियां मिली हैं।

'भारत को वापस कर दो कोहिनूर'

भारत के बहुमूल्य रत्न कोहिनूर को देश वापस लाने के लिए एक बार फिर आवाज़ उठने लगी है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज ने ब्रिटिश डेविड कैमरून से इस हीरे को भारत लौटाने का आग्रह किया है।

गौरतलब है कि वर्ष 1849 में पंजाब के शासक दलीप सिंह की हार के बाद से कोहिनूर ब्रिटेन में ही है। इस हीरे को भारत वापस लाने के लिए पहले भी कई बार भारत सरकार कोशिश करती रही है।

लेकिन अब भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद कीथ वाज चाहते हैं कि कोहिनूर हीरे को भारत को लौटा दिया जाए।कीथ ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से आग्रह किया है कि वह अगले सप्ताह अपनी भारत यात्रा के दौरान इस मुद्दे पर चर्चा करें।

बहरहाल ब्रिटिश सरकार हर बार कोहिनूर वापस करने की भारत सरकार की मांग को खारिज करती रही है। ब्रिटिश सरकार का इस मुद्दे पर साफ़ कहना है कि उसने यह हीरा 'वैध तरीके से अधिग्रहित' किया है इसलिये इसे वापस करने का कोई सवाल ही नहीं है।

हर दिन एक अरब बार देखा जाता है गूगल

सर्च इंजन की दुनिया के महारथी गूगल की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दिन एक अरब लोग इसकी वेबसाइट पर आते हैं। गूगल ने अपने इमेज सर्च की क्षमता बढ़ाकर प्रति पेज 1000 तस्‍वीरें कर दी है।

बीबीसी ने गूगल सर्च की वाइस प्रेसिडेंट मारिसा मेयर के हवाले से कहा, ‘‘इसके साथ ही गूगल इमेज सर्च इंजन के मामले में भी सबसे ऊपर हो गया है।’’

गूगल ने इमेज सर्च की अपनी क्षमता बढ़ाने के साथ ही अपने पेज व्‍यू की संख्‍या का खुलासा किया है। कुछ जानकारों का कहना है कि गूगल की ओर से शुरू किया गया नया फीचर इसके प्रतिद्वंद्वी बिंग की वेबसाइट पर पहले से मौजूद है। वर्ष 2001 में 25 करोड़ तस्‍वीरों से शुरू हुए गूगल इमेज सर्च के खजाने में फिलहाल दस अरब से अधिक तस्‍वीरें मौजूद हैं।

मेयर कहती हैं, ‘‘पिछले नौ वर्षों के दौरान गूगल के इमेज सर्च ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्‍की की है। यह वेबसाइट सभी तरह के फीचर से परिपूर्ण हो गई है।’’

रिपोर्ट के मुताबिक तस्‍वीरें गूगल पर सबसे अधिक सर्च किए जाने वाले कंटेंट में शुमार है। गूगल ने इमेज सर्च की क्षमता बढाने के साथ ही नया ऐड स्‍वरूप पेश किया है जिसे इमेज सर्च ऐड्स का नाम दिया गया है। इससे विज्ञापनदाता अपने टेक्‍स्‍ट विज्ञापनों में तस्‍वीरें लगा सकते हैं। गूगल के इस प्रयास को रेवेन्‍यू बढाने के लिए उठाए गए कई कदमों में से एक के तौर पर देखा जा रहा है।

घरेलू महिलाओं के एक महीने के काम का मोल 33 खरब रुपये

घरेलू महिलाओं के एक महीने के काम का मोल 33 खरब रुपये


नई दिल्ली. पूरे समय घर में रह कर घर संभालने वाली महिलाओं को सरकार ने भले ही जनगणना सूची में वेश्‍याओं, भिखारियों, कैदियों की श्रेणी में रखते हुए अनुत्‍पादक मान लिया हो, लेकिन सच यह है कि इन महिलाओं के काम का कोई मोल ही नहीं है। फिर भी, अगर इसे पैसों में तोला जाए तो रकम खरबों में पहुंच जाती है। मोटे अनुमान के मुताबिक घर संभालने वाली महिलाएं हर महीने परिवार के 33 खरब रुपये से भी ज्‍यादा बचाती हैं।


राजधानी में घरेलू नौकर मुहैया कराने वाली एक एजेंसी के मालिक सुमंत नेगी बताते हैं कि घर का काम-काज करने वाली एक नौकरानी महीने में कम से कम 6,000 रुपए पगार लेती है। उसके रहने और खाने की व्यवस्था भी परिवार को ही करनी होगी। रहने पर करीब 3,000 और खाने पर भी मासिक खर्च करीब-करीब इतना ही होगा। यानी उस पर कुल खर्च करीब 12,000 रुपये मासिक पड़ेगा। फिर नौकरानी केवल आठ घंटे ही काम करेगी, जिसमें एक घंटे का ब्रेक भी शामिल है। अतिरिक्त काम करने पर और भुगतान देना होगा। इसके दो हजार रुपए और जोड़ने पर कुल खर्च करीब 14,000 रुपए का होगा।


नेगी के मुताबिक दिल्‍ली में एक नौकरानी रखने पर कम से कम 14000 रुपये मासिक खर्च आएगा। अगर इस न्‍यूनतम खर्च को ही राष्‍ट्रीय स्‍तर पर औसत खर्च मान लिया जाए तो भी घरेलू महिलाओं के काम की कीमत खरबों में पहुंच जाती है। देश में 15 से 64 साल की कुल महिलाओं की संख्या 326,289,402 (2001 की जनगगणना के मुताबिक) है। इनमें 88,098,138 महिलाएं (करीब 27 फीसदी) कामकाजी हैं। 238,191,264 महिलाएं घरेलू काम करती हैं। 14,000 रुपये मासिक के हिसाब से इनके काम का मोल निकाला जाए तो रकम 333,467,769,8000 रुपए बैठती है।


सरकार के रुख का क्‍या कहिए


सेंसस के अनुसार घर में काम करने वाली महिलाएं घरेलू काम जैसे पानी भरना, खाना पकाना और बच्चों को संभालने जैसा काम करती हैं। इन्हें गैर कामगार की श्रेणी में रखा गया है। 1991 की जनगणना रिपोर्ट में घरेलू महिलाओं की तुलना वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों से की गई है। सूची में उन्‍हें इन्‍हीं के साथ एक ही श्रेणी में रखा गया है।


सुप्रीम कोर्ट की तल्‍ख टिप्‍पणी


सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान शुक्रवार को जनगणना रिपोर्ट में गृहिणियों को वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों की श्रेणी में रखने पर तल्‍ख टिप्‍पणी की। अदालत ने संबंधित अफसरों को कड़ी फटकार लगाते हुए नाराजगी जताई और गृहिणियों की भूमिका को अनमोल बताया। जस्टिस गांगुली ने कहा कि यह पक्षपात काफी स्पष्ट रूप से जनगणना के काम में दिखाई दे रहा है। अथारिटीज का यह रवैया पूरी तरह असंवेदनशील है। जस्टिस एके गांगुली और जस्टिस डीएस सिंघवी की पीठ एक महिला की सड़क दुर्घटना में हुई मौत के मामले की सुनवाई कर रही थी। मुआवजा बढ़ाने के मुद्दे पर हुई बहस के दौरान यह तथ्य उजागर हुआ। अदालत के अनुसार सरकार का यह रुख असंवेदनशील और निंदनीय है।


महिलाएं भी नाराज


जिस देश में महिलाएं राष्ट्रपति जैसा पद संभाल रहीं हों, वहां इस तरह का व्यवहार घोर आपत्तिजनक है। राष्ट्रीय महिला आयोग इस बारे में ठोस कार्रवाई पर विचार कर रहा है।


- राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य यास्मीन अबरार

जनगणना रिपोर्ट से इस अंश को तत्काल निकालना चाहिए और फिलहाल चल रही जनगणना की रिपोर्ट तैयार करते समय सुनिश्चित किया जाए कि यह गलती फिर न हो। उन्होंने बताया कि इस बारे में आयोग की सोमवार को बैठक आयोजित की गई है, जिसमें इस मामले में आगे की कार्रवाई पर निर्णय लिया जाएगा।


- दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष बरखा सिंह



`कोई इस तरह की टिप्पणी कैसे कर सकता है। जो भी महिलाओं को नौकरानियों, वेश्याओं, भिखारियों और कैदियों की श्रेणी में रखता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। बेहतर होगा कि उसका इलाज करवाया जाए।`


स्वाति सिंह, गृहिणी, नई दिल्ली