Tuesday, July 13, 2010

मासिक धर्म में धार्मिक कार्य वर्जित क्यों?

परमात्मा द्वारा स्त्री और पुरुषों में कई भिन्नताएं रखी गई हैं। इन भिन्नताओं के कारण स्त्री और पुरुषों में कई शारीरिक और स्वास्थ्य संबंधी अनेक विषमताएं रहती हैं। इन्हीं विषमताओं में से एक हैं स्त्रियों में मासिक धर्म।

वैदिक धर्म के अनुसार मासिकधर्म के दिनों में महिलाओं के लिए सभी धार्मिक कार्य वर्जित किए गए हैं। साथ ही इस दौरान महिलाओं को अन्य लोगों से अलग रहने का नियम भी बनाया गया है। ऐसे में स्त्रियों को धार्मिक कार्यों से दूर रहना होता है क्योंकि सनातन धर्म के अनुसार इन दिनों स्त्रियों को अपवित्र माना गया है।

यह व्यवस्था प्राचीन काल से ही चली आ रही है। पुराने समय में ऐसे दिनों में महिलाओं को कोप भवन में रहना होता था। उस दौरान वे महिलाएं कहीं बाहर आना-जाना नहीं करती थीं। इस अवस्था में उन्हें एक वस्त्र पहनना होता था और वे अपना खाना आदि कार्य स्वयं ही करती थीं।

मासिक धर्म के दिनों के लिए ऐसी व्यवस्था करने के पीछे स्वास्थ्य संबंधी कारण हैं। आज का विज्ञान भी इस बात को मानता है कि उन दिनों में स्त्रियों के शरीर से रक्त के साथ शरीर की गंदगी निकलती है जिससे महिलाओं के आसपास का वातावरण अन्य लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक हो जाता है, संक्रमण फैलने का डर रहता है। साथ ही उनके शरीर से विशेष प्रकार की तरंगे निकलती हैं, वह भी अन्य लोगों के लिए हानिकारक होती है। बस अन्य लोगों को इन्हीं बुरे प्रभावों से बचाने के लिए महिलाओं को अलग रखने की प्रथा शुरू की गई।

माहवारी के दिनों में महिलाओं में अत्यधिक कमजोरी भी आ जाती है तो इन दिनों अन्य कार्यों से उन्हें दूर रखने के पीछे यही कारण है कि उन्हें पर्याप्त आराम मिल सके। इन दिनों महिलाओं को बाहर घुमना भी नहीं चाहिए क्योंकि ऐसी अवस्था में उन्हें बुरी नजर और अन्य बुरे प्रभाव जल्द ही प्रभावित कर लेते हैं।

अंक -786 इस्लाम में खास क्यों?

सैकड़ों या उससे भी ज्यादा धर्म हैं पृथ्वी पर। हर धर्म की कुछ विशिष्टताएं या खासियतें होती है। हिन्दुओं में ऊँ, स्वास्तिक और कार्य के प्रारंभ में श्री गणेशाय नम: का विशेष महत्व माना जाता है। सिक्खों मे अरदास, गुरुवाणी, सत श्रीअकाल और पगड़ी का खास महत्व होता है। वहीं ईसाई धर्म के मानने वालों का जीजस का्रइस्ट, क्रास का चिन्ह, माता मरियम और बाइबिल आदि के प्रति बड़ा आत्मीय सम्मान होता है।



जिस तरह किसी भी नए या शुभ कार्य की शुरुआत करने से पूर्व हिन्दुओं में गणेश को पूजा जाता है, क्योंकि गणेश को विघ्नहर्ता और सद्बुद्धि का देवता माना जाता है। उसी प्रकार इस्लाम धर्म में अंक-786 को सुभ अंक या शुभ प्रतीक माना जाता है। अरब से जन्में इस्लाल धर्म में अंक -786 का बड़ा ही धार्मिक महत्व माना गया है।



प्राचीन काल में अंक ज्योतिष और नक्षत्र ज्योतिष दोनों एक भविष्य विज्ञान के ही अंग थे। प्राचीन समय में अंक ज्योतिष के क्षेत्र में अरब देशों में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई थी। अरब देशों में ही इस्लाम का जन्म और प्रारंभिक संस्कारीकरण हुआ है। अंक-786 को अरबी ज्योतिष में बड़ा ही शुभकारक अंक माना गया है।



अंक ज्योतिष के अनुसार जब 7+8+6 का योग 21 आता है, तथा 2+1 का योग करने पर 3 का आंकड़ा मिलता है, जो कि लगभग सभी धर्मों में अत्यंत शुभ एवं पवित्र अंक माना जाता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की संख्या तीन, अल्लाह, पैगम्बर और नुमाइंदे की संख्या भी तीन तथा सारी सृष्टि के मूल में समाए प्रमुख गुण- सत् रज व तम भी तीन ही हैं।